लेखनी कहानी -12-Jul-2022 हुस्न और इश्क
हुस्न और इश्क
एक दिन हुस्न और इश्क में गजब ठन गई
उस दिन की वो मुलाकात आखिरी बन गई
हुस्न तो अपने सौंदर्य के नशे में मगरूर था
आवेश में दोनों अभिमानी भृकुटियां तन गई
इश्क समंदर देखता रहा बरबादी का मंजर
हुस्न के जाल में उसकी तो जान पर बन गई
इश्क की चिरौरी , दुहाई कुछ काम ना आई
संदेह की एक दीवार दोनों के मध्य बन गई
डूबा पड़ा है इश्क गम के दरिया में आज तक
हुस्न की भी जान विरह की आग में जल गई
श्री हरि
12.7.22
Chudhary
14-Jul-2022 10:28 PM
Nice
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shweta soni
12-Jul-2022 08:08 PM
बेहतरीन रचना 👌
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Gunjan Kamal
12-Jul-2022 02:40 PM
शानदार प्रस्तुति 👌
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